यूपी में नहीं मिला एक भी 'बाल बहादुर', द‍िल्‍ली की गणतंत्र दिवस परेड में नहीं द‍िखेगा प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व

                            लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। स्मार्ट मोबाइल फोन और वीडियो गेम के इस खेल में हम बच्चों के अंदर देश व समाज के प्रति जिम्मेदारियों को बोध कराने में अक्षम साबित हो रहे हैं। आलम यह है कि विकास के इस स्मार्ट युग में बच्चों में समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का बोध नहीं रहा। इस साल एक भी बाल बहादुर का न चुना जाने में यह भी एक कारण लगता है।


अपनी बहादुरी के बल माता-पिता और समाज का नाम रोशन करने वाले बाल बहादुरों को दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का मौका हर वर्ष मिलता है। 1978 के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश से किसी भी बाल बहादुर का चयन नहीं हो सका है। देश के हर राज्य से ऐसे बाल बहादुरों को चयन भारतीय बाल कल्याण परिषद की ओर से हर साल किया जाता है। जिलाधिकारी के माध्यम से राजधानी के मोतीनगर स्थित उप्र बाल कल्याण परिषद कार्यालय में इंट्री भेजी जाती है। अधिकारियों की लापरवाही या फिर समाज की बदली सोच का नतीजा है कि इस बार सूबे का कोई भी बच्चा गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल नहीं हो पाएगा।